Trinity या त्रिएक परमेश्वर क्या है ? | Trinity Father, Son and Holy Spirit

अगर आप एक मसीही विश्वासी है तो ये लेख आपके लिय बहुत ही जरुरी है

 क्योकि इस में हम बात करने वाले है 

ट्रिनिटी या त्रिएक परमेश्वर  की – परमेश्वर के अस्तित्व की 




मेने ऐसा क्यों कहा की अगर आप विश्वासी है तो ?

क्योकि बिना ट्रिनिटी को समझे और बिना इस पर विश्वास किये आप मसीही विश्वास की गहरी तय में जा ही नहीं सकते और being a Christian आपको ट्रिनिटी के सिधांत को explain करना भी आना चाहिए 


क्योकि अगर आप इस बारे में किसी को समझा ही नहीं सकते तो आप खुद भी इस पर गहराई से विश्वास कर नहीं रहे है  और ट्रिनिटी पर विश्वास की कमी के कारण ही विश्वासी किसी भी cult पंथ में आसानी से फ़स जाते है / सकते है


याद रखिये यीशु के 12 चेले ट्रिनिटी को समझते थे उस पर विश्वास करते थे और दुसरो को भी समझाते थे और यीशु मसीही ने खुद भी ट्रिनिटी के बारे ये कहा था -  मति 28 :  18 -19 में  


 यीशु ने उनके पास आकर कहा, स्वर्ग और पृथ्वी का सारा अधिकार मुझे दिया गया है।

"इसलिए तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ; और उन्हें पिता, और पुत्र, और पवित्र आत्मा के नाम से बपतिस्मा दो,"

और Luka 3 : 21 में ,

जब सब लोगों ने बपतिस्मा लिया, और यीशु भी बपतिस्मा लेकर प्रार्थना कर रहा था, तो आकाश खुल गया।और पवित्र आत्मा शारीरिक रूप में कबूतर के समान उस पर उतरा, और यह आकाशवाणी हुई तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ से प्रसन्न हूँ।


रोमियो 8:9 में,

परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं।

(अथार्थ परमेश्वर की आत्मा ही यीशु मसीह की आत्मा है )


 नए नियम में ऐसे सेकड़ो वचन है जहा पर ट्रिनिटी का जिक्र चेलो के दुवारा किया गया है | 12 चेले अपने इस विश्वास को थामे रहे और अपनी आखरी सास तक प्रचार करते रहे, तो मसीही विश्वास बिना ट्रिनिटी के बेमतलब सा है


और यहीं से ट्रिनिटी को लेकर, कई सारे सवालो की बोछार होने लग जाती है, खासतोर पर मुश्लिम लोग, इसको एक इश्वर के विरोध में तीन इश्वर की पूजा करना मानते है, और क्योकि वे monotheism यानिके एक इश्वर/अल्लाह पर विश्वास करते है तो वे लोग ट्रिनिटी को polytheism अथार्थ बहुईश्वरवादी समझते है और ट्रिनिटी को खुदा की blasphemy करना कहते है|


और अगर बात करे क्रिश्चियनिटी की तो जब एक नया-नया विश्वासी, मसीह विश्वास में आगे बढ रहा होता है तो उसके लिए भी ट्रिनिटी के कांसेप्ट को समझना बहुत ही मुश्किल हो जाता है


विश्वास की कमी हमेशा confusion create करती है और confusion इन्सान को भटका देती है और भटका हुआ इन्सान मजबूत विश्वासी जीवन जी नहीं पता और वचन कहता है कि तेरे विश्वास के दुवारा ही तेरे साथ होता है |


पुराने नियम में भी हम ट्रिनिटी को देख सकते है उत्पति 1 : 26

फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाएँ

यहाँ पर परमेश्वर जब सृष्टि की रचना कर रहे थे तब भी परमेश्वर इस ट्रिनिटी की अवस्था में मोजूद थे

हिब्रू भाषा में उत्पति में परमेश्वर को “एलोहीम” करके लिखा गया है जिसका मतलब होता है “एक से ज्यादा परमेश्वर”

 इसके आलावा हम देख सकते उत्पति 3:22

फिर यहोवा परमेश्वर ने कहा,मनुष्य भले बुरे का ज्ञान पाकर हम में से एक के समान हो गया है:


 उत्पति 11:7 में,

इसलिए आओ, हम उतर कर उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डालें, कि वे एक दूसरे की बोली को न समझ सके।


यशायाह 6:8 में,

तब मैंने प्रभु का यह वचन सुना,मैं किस को भेजूँ, और हमारी ओर से कौन जाएगा?

इसी तरह  निर्गमन, भजन सहिंता , यर्मियाह  और मालकी में भी आप इस ट्रिनिटी परमेश्वर को देख पायेंगे


ट्रिनिटी को लेकर सवाल और संका }:-

* तो पिता पुत्र पवित्र आत्मा एक ही परमेश्वर के तीन रूप है ?

* या ये तीनो एक ही परमेश्वर है ?

* एक परमेश्वर के भला तीन रुप कैसे हो सकते है ? और अगर ऐसा है तो ये तो बहुइश्वर्वाद हुआ न ?

*पिता ही पुत्र है तो यीशु मसीही ने ये क्यों कहा की केवल पिता ही आदर के योग्य है ?पुत्र ही पिता है तो यीशु खुद से ही      प्रार्थना क्यों करता था ?

*पवित्र आत्मा ही यीशु है तो हम सीधे पवित्र आत्मा की पूजा क्यों नहीं कर लेते ?

*यीशु ही पिता परमेश्वर है तो वो फिर परमेश्वर के सिंघ्हासन के दाये और कैसे बेठे है ?


 ऐसे सेकड़ो सवाल आपको घेर लेते है

 

मुझे पूरा विश्वास है ,इन सभी सवालों के जवाब आपको इस लेख में मिल जायेंगे और साथ ही आप दूसरो को भी ट्रिनिटी समझाने में सक्षम हो जाओगे 


देखिये ट्रिनिटी या त्रिएक परमेश्वर को समझने के लिए सबसे पहले आपको प्रकाशन की आवश्यकता होती है बिना प्रकाशन के इसको समझ पाना थोडा मुश्किल काम हो सकता है क्योकि इन्सान के साथ एक बहुत बड़ी समस्या ये है कि  वो परमेश्वर को अपने दायरे में बंधना चाहता है और अपने नजरिये से खुदा को देखना चाहता है लेकिन परमेश्वर को दायरे में नहीं बाधा जा सकता, हमें इश्वर को समझने के लिए इश्वर के नजरिये से देखने की जरुरत है |


और अगर परमेश्वर को इतनी आसानी से समझा जा सकता तो फिर वो परमेश्वर ही क्यों होते है ? लेकिन परमेश्वर आप से बेहद प्रेम करते है  वो चाहते है की आप उसको समझ पाए और इसीलिए उसने हमें अपने स्वरुप में बनाया है


बाइबिल का परमेश्वर कहता है मुझे परखो और फिर विश्वास करो  मालकी 3:10 में ,


1.  सबसे पहले आप ट्रिनिटी को ऐसे समझ सकते है की परमेश्वर का “अस्तित्व” एक है और उसकी “शख्सियत” तीन           है| one in Being and three in Persons


 for ex – अगर में आप से पूछूं कि आप क्या है? तो जवाब होगा आप एक इन्सान हैRight !

और अगर मै आप से पूछूं कि आप कोन है? तो जवाब होगा आपका नाम की आप रमेश है या उमेश है |


तो आप का अस्तित्व है कि आप इन्सान है लेकिन आप की शख्सियत में आप रमेश है और रमेश के साथ साथ आप अपने घर में चिंटू भी हो सकते है यानिके आप बाहर के लोगो के लिय तो रमेश है लेकिन घर के लोगो के लिए चिंटू भी है लेकिन दोनों ही सूरत में आप इन्सान तो है ही|


इसी प्रकार परमेश्वर का Existence एक है कि वो परमेश्वर है लेकिन उसकी तीन Personalities है


1.       1. पिता

2.      2.पुत्र

         3.पवित्र आत्मा


चलिए अब इसको और डिटेल में समझने की कोशिश करते है कि परमेश्वर को इन तीन शख़्सियत की जरुरत क्यों पड़ती है ? क्यों परमेश्वर सिर्फ एक ही शख़्सियत के साथ नहीं हो सकता है ?


हम जानते है की परमेश्वर उसे कहा जाता है जिसने सब कुछ बनाया है – Right!


सब कुछ बाने वाला = परमेश्वर  


 आपको ये लाइन याद रखनी है कि सब कुछ बनाने वाले को क्या कहते है “परमेश्वर” ok


 अब कुछ लोग बेवकूफी भरा सवाल कर देते है कि फिर परमेश्वर को किसने बनया है ?


जवाब है कि - जिसने परमेश्वर जो बनाया है अब वो बनाने वाला ही परमेश्वर हो गया | 


मतलब की अगर हम A को परमेश्वर मानते है, तो अगर A  को B ने बनया है तो इस केस में अब B परमेश्वर कहलायेगा न कि A.  Same अगर B को C ने बनाया है तो अब C परमेश्वर है और ये Loop आप जितनी मर्जी बार दोहरा लो लेकिन बनाने वाला ही परमेश्वर कहलाता है अब mathematics के स्टूडेंट मेरी इस बात को आसानी से समझ गए होंगे !


तो परमेश्वर का अस्तिव है की उसने सब कुछ बनया है  


तो अगर परमेश्वर ने सारे ब्रह्माण्ड को बनाया है, तो scientific आधार पर हम ये जानते है कि पुरे ब्रह्माण्ड को एक एनर्जी यानिकी उर्जा थामे रहती है, सिंपल शब्दों में, ये ब्रह्माण्ड, गेलाक्सी, सोरमंडल, सूरज, चाँद, तारे, पृथ्वी आदि सब कुछ उस एक उर्जा के रूप है और उसी उर्जा या बल से जुड़े हुए है – Right! 

और इतने विशाल यूनिवर्स को, बहुत बड़ी मात्रा में उर्जा लगेगी तो जिस उर्जा को परमेश्वर अपने हाथो में थामे रखते है, उस विशाल उर्जा को थामने के लिय हम समझ सकते है कि परमेश्वर का खुद का कितना विशाल रूप होगा?  


जो खुद इतने विशाल यूनिवर्स को थामे रखता है वो खुद कितना विशाल होगा ?


इसीलिए परमेश्वर का अस्तित्व/ existence है- जो कहलाता है- सब कुछ बनाने वाला और इसको किसी भी रूप में मापा नहीं जा सकता, mathematics में इसको “इनफिनिटी” कहा जाता है


परमेश्वर को अब अपनी पहली शख़्सियत की जरुरत पड़ती है -  पिता के रूप में जिसने खुद सारी उर्जा बल या एनर्जी को रचाया है अपने आप में सब कुछ है और सारे आदर और महिमा और प्रशंसा के योग्य है  क्योकि कुल्लिस्सियो 1:16,17  में लिखा है,


क्योंकि उसी में सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुताएँ, क्या प्रधानताएँ, क्या अधिकार, सारी वस्तुएँ उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं।

और वही सब वस्तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएँ उसी में स्थिर रहती हैं।


अब अपनी बनाई गई सृष्टी पर विराजमान रहने के लिए और सिंहासन करने के लिए परमेश्वर के “अस्तित्व” को अपनी पहली शख़्सियत की आवश्यकता है और वो है पिता परमेश्वर जो स्वर्ग के सिंघासन पर विराजमान है और जहा से सब कुछ स्थिर रहता है|


एक तरह से आप इसको ऐसे समझ सकते हो कि परमेश्वर के पास एक सेंटर है जहा से वो पुरे यूनिवर्स को कण्ट्रोल करते है और पुरे ब्रह्माण्ड को, स्वर्ग को, पृथ्वी को, सभी सजीव और निर्जीव वस्तुवो को उर्जा इसी सेंटर से मिलती है, परमेश्वर स्वयं ही उर्जा का स्त्रोत है |


और उस सेंटर में पमेश्वर का सिंघासन है जिस पर उनकी पहली शख़्सियत विराजमान है – पिता-परमेश्वर 


और वहां अपार उर्जा का स्त्रोत है और उसी उर्जा से पिता प्रकाशवान है महिमामय है


 निर्गमन 33: 20 में,

फिर उसने कहा,तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मेरे मुख का दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता।


और इसके 22 में,

और जब तक मेरा तेज तेरे सामने होकर चलता रहे तब तक मैं तुझे चट्टान के दरार में रखूँगा,


 यहाँ पर हम देख सकते है कि पिता-परमेश्वर एक प्रकशवान तेज रौशनी के सामान है |


ध्यान दीजिये ये शख़्सियत का नाम है पिता परमेश्वर जो स्वर्ग के सिंघासन पर विराजमान है और अस्तित्व कौन है “परमेश्वर"


2.

दूसरा परमेश्वर को अपनी बनाई गई सृष्टी के अन्दर घुमने के लिए या ट्रेवल करने के लिय अपनी एक और शख़्सियत की जरुरत होती है और वो है "पवित्र आत्मा" 


चाहे वो स्वर्ग हो या पृथ्वी हो या फिर ब्रह्माण्ड का कोई भी कोना हो परमेश्वर को जहा भी जाना होता है वो प्रकाश की गति से भी तेज़ उस जगह पर पहुच जाते है या मोजूद होते है इसीलिए तो कहा गया है की परमेश्वर हर जगह मौजूद है इस मौजूदगी के लिए ही परमेश्वर को पवित्र आत्मा वाली शख़्सियत की जरुरत होती है


भजन सहित 139:7 से,  

मैं तेरे आत्मा से भागकर किधर जाऊँ?

या तेरे सामने से किधर भागूँ?

यदि मैं आकाश पर चढ़ूँ, तो तू वहाँ है!

यदि मैं अपना खाट अधोलोक में बिछाऊँ तो वहाँ भी तू है!

यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़कर समुद्र के पार जा बसूँ,

तो वहाँ भी तू अपने हाथ से मेरी अगुआई करेगा,

और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा।


और उत्पति 1:2 में,

पृथ्वी बेडौल और सुनसान पड़ी थी, और गहरे जल के ऊपर अंधियारा था; तथा परमेश्वर का आत्मा जल के ऊपर मण्डराता था।


ध्यान दीजिये परमेश्वर अगर एक ही अस्तित्व और एक ही शख्सियत में रहते तो उनको ट्रेवेल करने के लिय बार बार पने सेंटर को छोड़ के जाना होता जिस अवस्था में पुरे ब्रह्माण्ड में उथल पुथल मच जाती इसीलिए दुसरे काम के लिए दूसरी शख़्सियत की आवश्यकता है


अब कुछ लोग ये सोच सकते है कि परमेश्वर तो समय के अधीन नहीं है तो फिर ट्रेवेल करने के लिय समय तो लगता है, देखिये परमेश्वर समय के अधीन नहीं है लेकिन जहा समय मोजूद है वहां पर परमेश्वर समय का इस्तेमाल कर सकते है not a big deal, इसीलिए तो उन्होंने समय को बनाया है


और देखिये पृथ्वी एक बहुत ही छोटा सा गृह है ब्रह्माण्ड की तुलना में,  और इसमें आने जाने के लिए इसी के हिसाब का आकार चाहिए होगा और इसीलिए पवित्र आत्मा की जरुरत पड़ जाती है क्योकि रूप या आकार जिससे परमेश्वर ब्रह्माण्ड  को थामे हुए है वो पृथ्वी के हिसाब से बेहद विशाल है


अब हम उत्पति 1 में दखते है परमेश्वर ने सब चीजों की रचना बोल बोलकर अपने शब्दों से की है


3 


तब परमेश्वर ने कहा, उजियाला हो,” तो उजियाला हो गया।

और युहन्ना 1:1-3 में लिखा है

आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था।

यही आदि में परमेश्वर के साथ था।

सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उसमें से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न न हुई।


और इसके 14 वचन में लिखा है, और वचन देहधारी हुआ; और अनुग्रह और सच्चाई से परिपूर्ण होकर हमारे बीच में डेरा किया, और हमने उसकी ऐसी महिमा देखी, जैसी पिता के एकलौते की महिमा। 


यहाँ पर स्पष्ट रूप से यीशु मसीही के बारे में बताया गया है कि यीशु मसीह वह परमेश्वर का वचन था जो उसके मुह से निकलता था और उन्ही शब्दों से परमेश्वर ने सब को सृजा था


उत्पति अध्याय 1 की वह घटना जब सब कुछ रचा गया वहां पिता-परमेश्वर मोजूद है, पवित्र आत्मा है , और पिता -परमेश्वर के मुह से निकलने वाले शब्द है यानि की यीशु मसीही है


ध्यान दीजिये वहां पर परमेश्वर नहीं है – पिता परमेश्वर वाली शख़्सियत है परमेश्वर तो उस सेंटर पर मोजूद है जहा से पुरे यूनिवर्स को उर्जा मिलती है परमेश्वर का अस्तित्व हमेशा उसी सेंटर में रहता है केवल शख़्सियत काम करती है


तो परमेश्वर की तीसरी शख़्सियत है उसके “शब्द” और आगे चल के येही शब्द मनुष्य रूप में देहधारी हुए  यीशु मसीही के रूप में | 


*अब सवाल ये है कि यीशु मसीह के रूप में मनुष्य शरीर की परमेश्वर को जरुरत क्यों पड़ी?


*पिता परमेश्वर और पवित्र आत्मा से भी काम चल सकता था?


*या पिता परमेश्वर के मुह से निकलने वाले शब्दों को मनुष्य शरीर में देहधारी क्यों होना पड़ा ?


 

देखिये बाइबिल हमें बताती है कि परमेश्वर ने अपनी सारी रचनाओ में, पुरे ब्रह्माण्ड में, जीव जन्त्तु, पशु पक्षी आदि सिर्फ इस धरती पर ही बनाये है और उसके बाद हम इंसानों को विशेष रूप से बनाया, परमेश्वर ने हमें अपने स्वरूप में बनाया है


उत्पति 1:27

तब परमेश्वर ने अपने स्‍वरूप में मनुष्य को रचा, अपने ही स्वरूप में परमेश्वर ने मनुष्य की रचना की; पुरुष और स्त्री के रूप में उसने मनुष्यों की सृष्टि की


उत्पति में हम देख सकते है कि परमेश्वर ने जानवरों को अलग तरीके से बनाया और इंसानों को अलग तरीके से बनाया


अपने स्वरुप में अपने जैसा परमेश्वर ने इन्सान को बनाया है |


और हम ये भी जानते है की परमेश्वर अपनी सभी रचनाओ से बेहद प्यार करता है और आगे उत्पति में हम देखते है की आदम और हव्वा के पाप करने से आदम और हव्वा के साथ पूरी पृथ्वी को भी श्राप मिला 


तो परमेश्वर के लिए पुरे ब्रह्माण्ड में पृथ्वी और इसके जीव जंतु और मनुष्य सबसे महत्वपूर्ण है, Science के अधार पर भी देखे तो पृथ्वी ही एक मात्र ऐसा प्लेनेट है जोकि  Habitual प्लेनेट है, मतलब कि सिर्फ पृथ्वी पर ही जीवन के लिए सभी चीज़े मौजूद है और बाइबिल भी हमें ये ही बताती है कि परमेश्वर ने अपनी सारी रचनाये इसी पृथ्वी पर ही रची है 

And Human is a Masterpiece of God

in the image of God 

और  हम कोई बंदरो से evolve होकर नहीं आये है


अब परमेश्वर इस पुरे यूनिवर्स में जो कुछ भी करता है वो इंसानों के बीच में, इंसानों के लिए करता है परमेश्वर ऐसा क्यों करता है इस बात का जवाब आपको हमारी इस विडियो में मिल जायेगा "परमेश्वर ने इन्सान को क्यों बनाया" आप i बटन पर जा कर देख सकते है |


ℹ️ ▶️परमेश्वर ने इन्सान को क्यो बनाया था?


परमेश्वर की इच्छा है कि वो इन्सान के साथ रहे और उनके साथ अपना समय व्यतीत करे लेकिन इन्सान ने पाप किया और वह अपवित्र हो गया और क्योकि परमेश्वर पवित्र है इसीलिए इन्सान और परमेश्वर का रिश्ता टूट गया 


और इसी रिश्ते को जोड़ने के लिए परमेश्वर को इंसानों को अब फिर से पवित्र करने की जरुरत थी और इन्सान सिर्फ एक निर्दोष बलिदान के दुवारा ही पवित्र किया जा सकता था, हम जानते है कि मनुष्य अपनी धार्मिकता के कारन निर्दोष और पवित्र नहीं हो सकता था हमने पुराने नियम में दखा जब परमेश्वर ने धर्मीजन को ढूंढा, तो एक भी मनुष्य धर्मी न मिला |


भजन सहिंता 53 : 3 में 

वे सब के सब हट गए; सब एक साथ बिगड़ गएकोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं।


रोमियो 3: 10 – 12 में 

जैसा लिखा है: कोई धर्मी नहीं, एक भी नहीं। कोई समझदार नहींकोई परमेश्वर को खोजनेवाला नहीं। सब भटक गए हैं, सब के सब निकम्मे बन गएकोई भलाई करनेवाला नहीं, एक भी नहीं।


अब क्योकि एक भी धर्मी नहीं है और मनुष्य हमेशा परमेश्वर के सामने वाद विवाद करता है कि इन्सान का शरीर दुर्बल है इन्सान इश्वर की धार्मिकता के सिधान्तो को पूरा करने के लिए निहायत ही कमजोर है कोई भी इश्वर की धार्मिकता को पूरा कर ही नहीं सकता | परमेश्वर तो शक्तिशाली है, इन्सान के शरीर में किसी भी प्रकार की शक्ति नहीं है और न जाने क्या क्या बहाने हमेशा से मरता रहा है


इसीलिए परमेश्वर को अब अपनी तीसरी शख़्सियत की जरुरत थी “मनुष्य शरीर में आने के लिए”

और मनुष्य के बीच में रहने के लिए और उस व्यवस्था की धार्मिकता को पूरा करने के लिए जो मूसा को दी गई थी ताकि इंसानों को उनके बहाने मरने के लिए शर्मिंदा कर सके


जब परमेश्वर एक इन्सान की शख़्सियत में पृथ्वी पर आए तो वह पूरी तरह से इन्सान बन कर आया


यीशु ने जन्म लिया (लूका 2:7), वह इंसानों की ही तरह बड़ा हुआ (लूका 2:40, 52)। वह थकता था (यूहन्ना 4:6) और उसे  प्यास लगी (यूहन्ना 19:28) और भूख लगी (मत्ती 4:2), उसकी शारीरिक कमजोरी हो गई (मत्ती 4:11); लूका (23:26) उसकी मृत्यु हो गई (लूका 23:46)। और उसके पुनरुत्थान के बाद भी उसके पास एक वास्तविक मानव शरीर था (लूका 24:39; यूहन्ना 20:20, 27)


यीशु ने हर एक धार्मिकता को मनुष्य बनकर पूरा किया और हम सभो का पाप अपने कंधो पर उठाकर निर्दोष मेमने के समान बलिदान हो गया 


और उस शैतान के न्याय के लिए भी परमेश्वर ने मनुष्य की शख़्सियत को धारण किया


उपत्पति 3 : 15 में, 

और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूँगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा।


देखिए शैतान के सर को भी परमेश्वर ने मनुष्य की शख्सियत में रह कर कुचल डाला, शैतान और उसके दूतों ने जो पाप किया उसको परमेश्वर चाहता तो स्वर्ग में ही उनको  बंदी बनाकर कैद में डाल सकता था लेकिन इससे दुसरे स्वर्गदूतों में डर फेल जाता लेकिन परमेश्वर डर का नहीं परन्तु दया और प्रेम का इश्वर है |


और बुराई को परमेश्वर ने भलाई से ख़त्म किया है , ताकतवर को कमजोर से हराया है , एक दुर्बल से शरीर को धारण कर के परमेश्वर ने शैतान का सर कुचल डाला है


मुझे उम्मीद है अब आप थोडा बहुत समझ रहे होंगे कि परमेश्वर को अपनी तीन शख़्सियत की आवश्यकता क्यों है


 1. पिता परमेश्वर जो स्वर्ग के सिंघासन को संभालता है


2. पवित्र आत्मा जो उसकी सृष्टि में ट्रेवल करता है


3. पुत्र जिसने मनुष्यों के बीच में रहकर अपने लहू से लोगो के पापो का मोल चुकाया  



अब यहाँ पर ये ध्यान देने की बात है की पिता, पुत्र, पवित्र-आत्मा, ये तीनो उस परमेश्वर की तीन शख्सियत है न की उस के रूप |


रूप लेने में होता ये है कि - एक ही परमेश्वर को अपनी एक अवस्था को छोड़ के अपनी दूसरी अवस्था लेनी पड़ती है

लेकिन यहाँ पर ऐसा नहीं है,


यहाँ पर परमेश्वर अपनी तीनो अवस्था में मौजूद है तीन अलग अलग काम करने के लिए


क्योकी ये तीनो काम तीन अलग अलग वातावरण में होते है, स्वर्ग का वातावरण अलग है , पृथ्वी का अलग और आत्मिक वातावरण अलग है


परमेश्वर जिस अवस्था में ब्रह्माण्ड को सँभालते है उस अवस्था में वो बातचीत नहीं कर सकते  लेकिन जिस अवस्था में परमेश्वर स्वर्ग के सिंघासन को सँभालते है उस अवस्था में उनको बातचीत करने के लिए बोलने वाले शरीर या शख़्सियत की जरुरत है और पृथ्वी के मनुष्यों के बीच में रहने के लिए परमेश्वर को पुत्र की शख्सियत की जरुरत है   


आप खुद ही सोचिये अगर स्वर्ग क सिंघासन से सीधे पिता परमेश्वर पृथ्वी पर आते तो पृथ्वी के लोगो का क्या हाल होता वो सब एक ही बार में मर भी सकते थे क्योकि पृथ्वी के सभी लोग अपवित्र थे और एक अलग वातावरण में रहते है


और पिता परमेश्वर के साथ स्वर्ग में रहने के लिए ही यीशु मसीही पुनरुथान में हमें एक नया स्वर्गीय शरीर देने का वादा करते है | 


अब इस बात को थोडा और समझते है की एक अश्तित्व की 3 शख्सियत कैसे हो सकती है


हम जानते है की परमेश्वर ने हमें अपने स्वरूप में बनाया है


हमारे खुद के अंदर भी तीन शक्शियत होती है –


1.       1. शरीर (हाड मास)= हम सब का DNA यूनिक है , हमारे सिर्फ 1 बाल से भी हमको पहचाना जा सकता है DNA              मैच कर के


2.       2. प्राण (ब्लड / लहू )= जिसके दुवारा हमारे शरीर को oxgen या उर्जा मिलती है , हमारे मरने के बाद भी हमारा               खून कई दिनों तक जीवित रहता है


3.       3. आत्मा (स्पिरिट)= हमारी आत्मा के निकल जाने के बाद भी शरीर के अंग कई घंटों तक जीवित रहते है ,                       हमारी आत्मा सबसे महत्वपूर्ण है परमेश्वर के लिय


 अब देखिये वेसे तो हम अस्तित्व में बस एक इन्सान है लेकिन हमारे भीतर भी 3 शख्सियत है

 

अब जो कहते है कि ठीक है , पिता पुत्र पवित्र आत्मा एक ही है?, तो फिर यीशु ने  खुद से ही प्रार्थना क्यों की 


 मति 26 :39 में, 

फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुँह के बल गिरकर, और यह प्रार्थना करने लगाहे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझसे टल जाए, फिर भी जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।


 देखिये पिता परमेश्वर स्वर्ग के सिंघासन पर बेठे है और वहां से ही सारी उर्जा का स्त्रोत फूटता है और यीशु मसीही परमेश्वर के शब्द है


 तो आप मुझे बताइए क्या आप अपने आप से, खुद से रोज बाते नहीं करते है?


क्या आप हर समय अपने मन मन में अपनी आत्मा से बाते नहीं करते है?


आप 1 मिनट भी चुप नहीं होते है हर समय आप खुद से बाते करते है?


आप ऐसा क्यों करते है ?- कभी सोचा है?


आप इस बात को बहुत अच्छे से समझ जायेंगे की यीशु ने पिता से प्रर्थना क्यों की, बस आप आज से एक काम की प्रैक्टिस शुरू कर दीजिये


आप अपने मन में जो बात करते है उसमें अपनी आत्मा का नाम पुत्र रख के बात करना शुरू कर दीजिये


आज से आप मन मन में बोलना - रमेश पुत्र सुबह जल्दी उठा करो, पुत्र ज्यादा टीवी मत देखा करो and so on...


आप देख पाएंगे कि ऐसा करने से आप अलग अलग इन्सान नहीं हो गए है, बस आपकी शख्सियत अलग अलग दिखाई पड रही है, अब अगर आप इन्सान के तौर पर समझेंगे तो ये बाते नामुमकिन सी लग सकती है, लेकिन परमेश्वर के नजरिये से देखेगे तो उसके लिए सब कुछ संभव है,


मेरा आप से एक सवाल है जिस परमेश्वर ने सब कुछ बनाया क्या वो अपने लिय तीन शख्सियत नहीं बना सकता ???


 इसीलिए तो परमेश्वर ने हमें अपने स्वरुप में बनाया है ताकि हम उस परमेश्वर को समझ सके क्योकि प्रभू आपसे बेहद प्रेम करता है  आमीन!!!


अब जिन लोगो को ऐसा लगता है की पिता परमेश्वर बड़ा है - फिर पुत्र है - फिर पवित्र आत्मा है तो  हम सबसे बड़े की यानिकी पिता परमेश्वर की ही पूजा कर लेते है, - नहीं ऐसा नहीं है !!!


तीनो ही समान है तीनो ही एक ही परमेश्वर है 


कुछ लोग ये भी सोचते है की पवित्र आत्मा - जीसस अनलिमिटेड है यानिकि यीशु जो काम शरीर में नहीं कर सकता था वो पवित्र आत्मा में कर सकता है - नहीं ये भी गलत है !!! 


ऐसा कहकर भी आप परमेश्वर के त्रिएक सिद्धांत की निंदा कर रहे है 


परमेश्वर की तीनो शख्सियत समान है और तीनो एक ही परमेश्वर है


ये कुछ इस तरह से है - सब कुछ बनाने वाला परमेश्वर = पिता परमेश्वर = पुत्र परमेश्वर = पवित्र आत्मा परमेश्वर   


 तो अगर आप ट्रिनिटी पर विश्वास करते है जोकि बाइबिल करती है जोकी चेले करते थे जिन्होंने इसी विश्वास के साथ अपने आप को दुखो में झोक दिया जिन्होंने मार खाई , दर दर भटकते फिरे और शहीद हो गए, ताकि सुसमाचार आप तक पहुच सके और आपके विश्वास के दुवारा आप उद्धार पा सके


तब इस ट्रिनिटी या त्रिएक परमेश्वर पर विश्वास करके आप कोई बहुइश्वरिवादी नहीं हो जाते है ना ही उस एक खुदा की निंदा करते है, बल्कि त्रिएक परमेश्वर पर विश्वास करके ही आप सच्चे परमेश्वर के भक्त बनते है


और जितने भी ये झूठे मसीही पंथ निकल कर सामने आते है आप देख सकते है कि ये त्रिएक परमेश्वर के सिद्धांत के साथ छेड़ छाड़ करते है, चाहे वो "यहोवा विटनेस" वाले हो , "माता यरूशलेम" वाले, "विलियम ब्रहम" वाले हो , या "शिन्चोंजी"  वाले हो , कोई भी हो ,


इन लोगो के लिए पिता, पुत्र, पवित्र आत्मा, मायने नहीं रखता है, इन लोगो के लिए यीशु का बलिदान काफी नहीं है , इनके लिए वो सहायक वो पवित्र आत्मा काफी नहीं है , इनको कुछ और भी चाहिए


इसीलिए तो यीशु ने कहा था सिवाए "योना" के तुन्हें और कोई चिन्ह नहीं दिया जायेगा और मेरे बाद बहुत से झूठे आयेंगे ऐसो से सावधान रहे!!!!


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