दीवार के उस पार
Street Church Movement
गली नुक्कड़ चर्च अभियान
और घुटनों पर संघर्ष प्रार्थना (Prayer war)
"गांव गली घर जाना
यीशु वचन सुनाना है"
जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं। यूहन्ना 20:21 अपने घर चर्च की चारदीवारी से बाहर भी निकलना है, नुक्कड़ में, ढाबों में, बस स्टैंड, चाय की दुकान, मैदान और खेतों में जाकर लोगों से मिलना है।
हमारे पास चर्च है, क्वायर हैं, बाइबल कॉलेज हैं, स्कूल हैं, किताबें हैं पर फिर भी प्रभु यीशु समाज में चर्चा विषय नहीं बने हैं। परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी लेकर जाना है। लोगों के साथ उठना-बैठना है।
धूल भरे रास्तों पर मनुष्य रूप में प्रभु यीशु चले फिरे । परमेश्वर का राज्य लेकर वो कंगालों, अंधों, बंधुओं और कुचले पीड़ित लोगों तक पहुंचे। लूका 4:18
आम लोगों के माहौल में जाकर जब हम उनसे मिलते हैं तभी हम उनकी घटी, कमी, चिंता, बीमारी, डर या भूत-प्रेत के आतंक के विषय में जानकारी पाते हैं।
लोगों के सवालों के जवाब भी दे पाते हैं। दीवार के उस पार भी कोई जरूरतमंद है। जहां भूखे-प्यासे, नंगे, बेघर, बीमार और कैदी रहते हैं। मत्ती 25
आइये आज हम मिलकर प्रभु यीशु के पीछे हो लें। उस पार चलें जहां अंधकार, और मृत्यु की छाया है। मत्ती 4:16, 17 उस ने उन से कहा, आओ, हम और कहीं आस पास की बस्तियों में जाएं, कि मैं वहां भी प्रचार करूं, क्योंकि मैं इसी लिये निकला हूं। मरकुस 1:38
शिष्य थॉमसन
ये अभियान (Movement) है क्या?
सुसमाचार सुनाने और चेले बनाने के लिए गली-नुक्कड़ जैसी आम जगहों पर चर्च, संगति को बढ़ावा देना, और प्रार्थनापूर्वक सुसमाचार प्रचार और आराधना के उस तरीके को इस्तेमाल करना जो मूल सुसमाचारों में है और जिसका प्रयोग स्वयं प्रभु यीशु ने किया था। जरूरत इस बात की है कि आम लोगों से चार दीवारों के बाहर मिला जाए- जैसे गली के नुक्कड़ों पर, छोटे गाँवों में, पेड़ों की छाँव में, सड़कों पर और चाय की दुकानों जैसी जगहों पर मिला जाये। हमें गली-मोहल्लों में चलने वाले चर्च को प्रोत्साहित करना है।
दीवार के उस पार
ये वह जगह है जहाँ लोगों को मदद की ज़रूरत है, और जहाँ वे निराशा में डूबे हुए और खोए हुए हैं।
प्रभु यीशु ने हमें मेलमिलाप की एक ऐसी सेवकाई में बुलाया है। जिसमें हमें सभी निराश और निर्बल लोगों के पास सुसमाचार ले जाना है। हम पवित्र आत्मा और परमेश्वर के वचन की सामर्थ्य से इन ऊँची, सशक्त, अटूट लगने वाली दीवारों को ढा सकते हैं। मसीही होते हुए, हमें अपने चारों ओर उन दीवारों को पहचानना होगा जो हमें दूसरी तरफ मौजूद लोगों के पास पहुँच पाने और उन्हें परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार देने से रोकती हैं।
इफिसियों 2:14, क्योंकि वह स्वयं हमारा मेल है जिसने बैर अर्थात् विभाजित करने वाली दीवार को गिराकर दोनों को एक कर दिया है।
चर्चा सड़कों पर क्यों नहीं?
प्रभु यीशु के मानव रूप धारण कर इस संसार में आने का मकसद लूका 4:18 में है। मैं कंगालों को खुशखबरी देने, बंधुओं को मुक्त करने, अंधों को दृष्टिदान देने और कुचले हुओं को छुड़ाने आया हूँ।
आज भारत में प्रभु यीशु को लोग क्यों नहीं जान पा रहे हैं। लाखों लोग प्रभु यीशु के प्रेम संदेश और मुक्ति के उपाय के बारे में जानकारी क्यों नहीं रखते हैं।
वो इसलिये कि यीशु का नाम, उसकी प्रेम कथा, महान् जीवन, नम्रता, सेवा और क्रूस पर पापियों की मुक्ति के लिये बलिदान इत्यादि बातें यहाँ सड़कों पर और समाज में आम चर्चा के विषय नहीं बने हैं। आप अपने चर्च से एक किलोमीटर दूर रास्ते पर यदि सब्जी वाले से या किसी चाय वाले से या पान वाले से पूछें कि क्या यहाँ कोई आसपास चर्च है, तो वो नहीं बता पायेगा।
उससे पूछें क्या आप प्रभु यीशु को जानते हैं, और वो किस कारण संसार में आये थे, तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं होगा। वो इसलिए कि प्रभु यीशु आम लोगों में चर्चा के विषय नहीं बने हैं।
सुसमाचार और भक्ति चारदीवारी के अंदर सीमित है। चर्च के अंदर भीड़ बढ़ाना बस उद्देश्य रह गया है।
पहली शताब्दी में सुसमाचार फैलने का कारण-
थोड़े से शिष्यों और विश्वासियों का सड़क पर उतरना था, प्रेरितों के काम की किताब हमें इसकी गवाही देती है।
प्रेरित 5:28 तुमने सारे यरूशलेम को अपने उपदेश से भर दिया है।
प्रेरित 16:20 ये लोग जो यहूदी हैं, हमारे नगर में बड़ी हलचल मचा रहे हैं।
प्रेरित 17:6 ये लोग जिन्होंने जगत को उलटा पुलटा कर दिया है। यहाँ भी आ पहुँचे हैं।
उनके पास न नया नियम था, न कोई किताब, न ट्रेनिंग, बस ये
परमेश्वर की पवित्र आत्मा की अगुवाई में सड़कों पर प्रभु यीशु को
चर्चा का विषय बनाये हुए थे।
गली-नुक्कड़ चर्च का पूरा मकसद-
मसीहियों को यीशु के जीवन के सत्य से प्रेरित करना और उन्हें अपने घरों और सभागृहों की चार दीवारों को छोड़ रास्तों में निकल आने का आह्वान करना और ऐसा जीवन जीने के लिए आमंत्रित करना जैसा प्रभु यीशु का जीवन था।
फिर भी वह आया
संसार में आने के बाद, हमारा प्रभु उन जगहों में गया जहाँ कोई जाना नहीं चाहता था। हालांकि उसके दुश्मनों ने उसे धमकाया व सताया, उसे मार डालने के लिए पत्थर उठा लिए। उनके आराधनालयों, गाँवों और नगरों में से उसे बाहर निकाला, और उसके प्रेम, शांति व अनन्त जीवन के संदेश को अस्वीकार कर दिया, लेकिन फिर भी, वह आया।
यूहन्ना 1:9-12, वह सच्ची ज्योति जो हरेक मनुष्य को प्रकाशित करती है, जगत में आने वाली थी। वह जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे न पहचाना। वह अपनों के पास आया, और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। लेकिन जितनों ने उसे ग्रहण किया, उन्हें उसने परमेश्वर की संतान होने का अधिकार दिया।
उसके प्रेम ने घृणा और हिंसा के अंधियारे में उजियाला कर दिया, और उन्हें छुड़ा लिया जो मृत्यु की छाया में बैठे थे।
मत्ती 4:16, जो लोग अंधकार में बैठे थे, उन्होंने बड़ी ज्योति देखी। जो मृत्यु के देश की छाया में बैठे थे, उन पर एक ज्योति चमकी।
यूहन्ना 20:21, प्रभु यीशु ने कहा-जैसे पिता ने मुझे भेजा है, मैं भी तुम्हें वैसे ही भेजता हूँ।
मसीही सहभागिता, मेलजोल और सुसमाचार की चर्चा और गवाही आम लोगों की जगहों में, बाजारों में, और छोटे-छोटे गली- मोहल्लों में होना चाहिए। लोगों की भीड़ वहीं होती है। हमें वहाँ प्रभु यीशु के गवाह होने की ज़रूरत है।
भारत के संदर्भ में-हमें उठकर आसपास के स्थानों में निकल
जाना चाहिए।
हम घर का सामान ख़रीदते हुए, या खुली जगहों में पेड़ों की छाँव तले भी लोगों से मुलाकात कर सकते हैं। पड़ोसियों या दोस्तों के घरों में, या बाहर बाज़ारों में भी बातचीत का अच्छा मौका हमें मिल सकता है, बाज़ारों में जहाँ अजनबी लोगों की भीड़ इकट्ठी होती है और लोग बहुत सी दिलचस्प बातों पर चर्चा-विचार करते हैं। हम वहाँ सुसमाचार ले जा सकते हैं।
गली - नुक्कड़ कलीसिया अभियान की सोच पहली शताब्दी में यीशु के चेलों के काम करने के तरीके के साथ सही बैठती है।
प्रभु ने कहा, मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा-लेकिन उसके कहने का अर्थ ईंट और पत्थर से इमारतें बनाना नहीं था। लोगों के बीच में काम करते हुए, प्रभु यीशु ने कोई आश्रम, मुख्यालय या उपदेश देने के लिए कोई केन्द्र नहीं बनाया था। वह लोगों के बीच गया जहाँ वे रहते थे। वह लोगों के साथ उठता बैठता और उनसे बातें किया करता था। उनके बीच होने वाले आपसी संवाद, सुनने वालों के जीवन में एक मुक्तिदाता की ज़रूरत दर्शाते थे। और स्वर्ग का राज्य एक खुशखबरी के रूप में उन्हें दिखाई देने लगता था।
जब हम लोगों से उनके माहौल में जाकर मिलते हैं- सिर्फ तभी हम उनकी ज़रूरतों, उनकी चिंताओं, उनके सवालों, और उनकी आशंकाओं के बारे में जान पाते हैं। सिर्फ तभी हमें उनके पारिवारिक और सामाजिक हालातों की जानकारी मिलती है, और हम यह बता पाते हैं कि उनके जीवन की वास्तविक ज़रूरत परमेश्वर ही है चंगाई या पारिवारिक समस्याओं के लिये प्रार्थना है। हम कभी यह भी बता देते हैं कि वह दुष्टात्माओं द्वारा सताया जा रहा है। इन मुलाकातों द्वारा
एक आत्मिक सफर शुरू हो सके जिसका अंत उद्धार हो ।
जब हम किसी एक व्यक्ति या एक छोटे झुण्ड के साथ संगति करते हैं, तब हमारा मनोभाव एक-दूसरे के पास आने, अपनी प्रार्थनाओं और ज़रूरतों को बाँटने, मुश्किलों और कमजोरियों को अंगीकार करने, तथा परमेश्वर के वचन से एक-दूसरे को उत्साहित करने का हो जाता है।
विश्वासियों या अविश्वासियों से खुली जगहों में मिलना हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है और यही गली नुक्कड़ चर्च या Street Church Movement की सोच है। खुली जगहों में भी, हम परमेश्वर का वचन बाँट सकते हैं, आराधना-गीत गा सकते हैं, और सहभागिता करते हुए मिलकर घुटने भी टिका सकते हैं।
यह बुलाहट उत्तर भारत के विश्वासियों और जगत में फैले दूसरे
लोगों के लिए भी है।
गवाह बनना अनिवार्य है।
प्रेरितों के काम 1:8, लेकिन जब पवित्र आत्मा तुम पर आएगा, तब तुम सामर्थ्य पाओगे, और यरूशलेम, सारे यहूदिया और सामरिया, यहाँ तक कि पृथ्वी के छोर तक तुम मेरे गवाह होगे।
हरेक विश्वासी में पाया जाने वाला सामान्य चिह्न यह है कि विश्वासी हमेशा ही इस जगत में एक गवाह होता है। लेकिन अगर हम अपने आपको सिर्फ रविवार की सभाओं या हमारी नियमित साप्ताहिक सभाओं तक ही सीमित किए हुए हैं, तो हम पवित्र आत्मा के जीवनका अनुभव नहीं पाये हैं।
प्रचार कार्य एक गवाह ही कर सकता है-
मरकुस 1:38, यीशु ने उनसे कहा, आओ, हम और कहीं आसपास की बस्तियों में जाएं, कि मैं वहाँ भी प्रचार कर सकूँ, क्योंकि मैं इसीलिए निकला हूँ।
मरकुस 16:15, और उसने उनसे कहा, तुम सारे जगत में जाओ और सारी सृष्टि को सुसमाचार प्रचार करो।
मरकुस 16:20, और चेलों ने जाकर सब जगह प्रचार किया, और प्रभु उनके साथ काम करता रहा, और वचन को उन चिह्नों के द्वारा जो साथ-साथ होते थे, दृढ़ करता रहा।
मत्ती 18:20, जहाँ दो या तीन मेरे नाम से इकट्ठे होते हैं, वहाँ मैं उनके बीच में हूँ।
सताव से बिखरा हुआ चर्च
नये नियम में कहीं कोई चर्च के भवन नज़र नहीं आते यीशु के चेले सड़कों और घरों में इकट्ठे होते थे, और परमेश्वर के प्रेम का ऐलान करते थे। उनके संदेश से पूरे-पूरे शहर उलट-पलट हो रहे थे।
प्रेरितों के काम 8:1-4, उसी दिन से यरूशलेम की कलीसिया पर...
घोर अत्याचार शुरू हुआ, और प्रेरितों को छोड़ वे सब यहूदिया और सामरिया में तितर-बितर हो गए 3 लेकिन शाऊल घर-घर जाकर कलीसिया को उजाड़ने और स्त्री-पुरुषों को घसीट-घसीट कर बंदीगृह में डालने लगा। 4 जो तितर-बितर हुए थे, वे सुसमाचार सुनाते हुए फिरे।
प्रेरितों के काम 17:6, वे चिल्लाकर कहने लगे, 'ये लोग जिन्होंने संसार में उथल-पुथल मचा दी है, यहाँ भी आ पहुँचे हैं।'
गाँव गलियों में प्रभु यीशु
प्रभु यीशु ने कहा कि परमेश्वर का राज्य तुम्हारे भीतर है। उसने यह भी कहा कि परमश्वर का राज्य तुम्हारे नज़दीक है। उसने अपने चेलों को यह सिखाया कि वे प्रार्थना करें कि परमेश्वर का राज्य पृथ्वी पर आ जाए, जिसका अर्थ है हर जगह परमेश्वर की इच्छा पूरी होने लगे और जहाँ हरेक व्यक्ति के हृदय और मन में सबसे बढ़कर परमेश्वर का प्रेम होगा, और जो एक दृढ़ निश्चय के साथ प्रभु का
आज्ञापालन करना चाहेगा।
मत्ती 4:17, उस समय से यीशु ने यह प्रचार करना और कहना शुरू कियाः मन फिराओ, क्योंकि स्वर्ग का राज्य पास आ पहुँचा है। प्रभु यीशु संसार के लिए खुश-ख़बरी की भेंट लेकर आया था, और हरेक व्यक्ति पापों की क्षमा की इस भेंट को ग्रहण कर सकता था। यीशु नगर-नगर और गाँव-गाँव घूमता फिरा वह खेतों और जंगली स्थानों में से आता-जाता रहा। वह नाव में सवार होकर एक ऐसी जगह भी गया जहाँ उसे सिर्फ एक ऐसा मनुष्य मिला जिसे छुटकारे की
ज़रूरत थी।
वह भूखे और प्यासे, नंगे और बीमार, और सड़कों पर रहने वाले बेघर लोगों से मिलता था। वह बाज़ारों में जाता था जहाँ वह बड़ी भीड़ के बीच में चलता-फिरता था।
लोगों से मिलें और उसके चेलों से भी यही उम्मीद की जाती है कि वे भी इन्हीं
सिर्फ चर्च की चार दीवारों के बीच में ही नहीं।
लेकिन ये मुलाकातें एक गली-नुक्कड़ चर्च के रूप में, नीले आसमान
के नीचे हों।
मत्ती 4:16-17, जो लोग अंधकार में बैठे थे उन्होंने बड़ी ज्योति को देखा जो मृत्यु के देश और छाया में बैठे थे, उन पर एक ज्योति चमकी।
प्रभु यीशु यरूशलेम की पवित्र नगरी और तीर्थ नगरी में आश्रम बनाकर क्यों नहीं बैठे, लोगों को अपने दर्शन करने अपने पास क्यों नहीं बुलाये, लेकिन वे गलील के उन स्थानों पर गये, जहाँ अंधकार, हिंसा, निराशा, भुखमरी और भय का माहौल था।
गली नुक्कड़ के चर्च भी इसी तरह की जगहों पर आना चाहिये। मत्ती के अध्याय 5 से लेकर अध्याय 7 तक पहाड़ी उपदेश में, उसने सबसे गरीब, दीन-हीन, नम्र, और दबे-कुचले लोगों के पास स्वर्ग का राज्य पहुँचाया।
मत्ती 5:3,8,10, धन्य हैं वे जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। धन्य हैं वे जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्वर को देखेंगे। धन्य हैं वे जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
जब परमेश्वर का राज्य आपके भीतर होगा, तब शांति आपका अनुभव होगा, आशा आपका आश्वासन, और आनन्द आपकी अभिव्यक्ति बन जाएगा।
स्वर्ग के राज्य में शांति, आशा और प्रेम है, और डर नहीं है।
आनंद है और मुक्ति और सनातन स्वर्ग का जीवन है।
दीवार के उस पार प्रभु यीशु
गलील में - यीशु की सेवकाई का बड़ा हिस्सा उत्तरी राज्य के गलील में पूरा हुआ था इस्राएल का वह भाग जिसमें कमजोर गरीब, कम पढ़े-लिखे, और मिली-जुली जाति के लोग रहते थे। गलील का प्रदेश ऐसा था जहाँ धर्म-कर्म ज्यादा नहीं था, और जहाँ रोमी प्रशासन का जुल्म ज्यादा साफ तौर पर नज़र आता था। गलील को एक बगावती और खतरनाक जगह माना जाता था, लेकिन यीशु ने यहूदिया
प्रांत और राजधानी यरूशलेम की अपेक्षा अपना ज्यादा समय इन्हीं जगहों पर बिताया था।
यीशु ने गलील में यहूदिया से ज़्यादा चिह्न चमत्कार किए थे, और यहीं लोगों की बड़ी-बड़ी भीड़ के बीच में वो प्रचार करता फिरा था।
यहूदिया में तो धार्मिक फरीसियों के साथ उसकी अक्सर मुठभेड़ होती रहती थी जो उसके काम में लगातार रुकावट पैदा करते और उसे मार डालने की योजना बनाते रहते थे।
सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक दीवारें
यीशु ने ऐसे-ऐसे काम किए जो उस समय की संस्कृति में लोगों को मंजूर नहीं थे। उसने बार-बार सांस्कृतिक परम्पराओं को तोड़ा था जिनसे फरीसी धर्मगुरू बड़ी उलझन और परेशानी में पड़ जाते थे।
यीशु ने एक सामरी स्त्री-से बातचीत की, सामरी इस्राएली मूल के वे लोग थे जिनके मूर्तिपूजक अश्शूरी लोगों के साथ अंतर्जातीय विवाह हुए थे।
चेले हाथ धोए बिना ही एक फरीसी के घर में खाना खाने बैठ गए थे जिससे फरीसियों की परम्परा टूट गई थी
यीशु ने सब्त के दिन-उनके आराधनालयों में बीमारों को चंगा किया था। जो सब्त की पवित्रता पर प्रश्न डालता था।
अछूत लोगों के गाँव में प्रभु यीशु गये, और उनके बीच में रहकर उनके साथ खाया पिया, तब उसने उनकी सांस्कृतिक, धार्मिक पहचान को तोड़ा था।
यीशु ने कोढ़ियों को छुआ - और उन्हें चंगा किया, तब उसने शुद्धता के बारे में उनकी धार्मिक आस्थाओं को तोड़ा था।
यीशु गिरासेनियों के बीच में गया जिन्हें अशुद्ध जाति माना जाता था, क्योंकि वे सूअर पालते और उन्हें खाते थे।
उसने अपनी शिक्षा और प्रचार को मन्दिर और आराधनालयों की चार - दीवारों तक ही सीमित नहीं रखा वह सड़कों, गलियों में लोगों से मिलता और उन्हें परमेश्वर के राज्य का सत्य सिखाता था।
यीशु धर्म की हदों को तोड़ कर पापियों से मिलता-जुलता था। उसने अपने आपको एक आम आदमी की तरह समाज में प्रकट किया, और अपने आपको मनुष्य का पुत्र बताने के द्वारा धार्मिक सोच-समझ को एक नया दृष्टिकोण दिया था।
फिर भी वह परमेश्वर का मेमना था जो जगत का पाप उठा ले जाता है, वह जिसके बारे में मूसा ने अपनी व्यवस्था में लिखा था, वही मसीह, इस्राएल का राजा और परमेश्वर का वह पुत्र था जिसके बारे में नबियों ने लिखा था।
यीशु धार्मिक और सामाजिक परम्पराओं की दीवारें, अन्याय के काम, और हिंसा की दीवारों को गिराने के लिए आया था। पीड़ित लोग, दीवार के उस पार निराशा और अंधकार में रहते हैं।
एक मसीही विश्वासी भी अपने इर्द-गिर्द ये दीवारें बना लेता है, या फिर ये एक संस्थागत रूप में खड़ी कर दी जाती हैं। यीशु उन दीवारों के उस पार चला गया था, और उसने अपने चेलों से उसके पीछे चलते हुए वहीं जाने के लिए उन्हें बुलाया था।
गरीबी, जातिवाद, बीमारी और नफ़रत की दीवार
1. यीशु भूख की दीवार-के पीछे रहने वालों को याद रखता
है। उसने पाँच हज़ार लोगों को खिलाने के बाद, 12 चेलों को बचे हुए टुकड़ों के 12 टोकरे थमाये ताकि वे लोग जो रोटी लेने के लिए यीशु के पास नहीं आ सके थे, उनकी भी भूख मिट सके। प्रभु यीशु मसीह की आँखें उन भूखे लोगों पर भी थीं। यूहन्ना 6:12-13
2. यीशु ने ग़रीबी की दीवार के पीछे रहने वालों को निमंत्रण दिया जिन्हें कोई आमंत्रित नहीं करता था।
लूका 14:13-14, लेकिन जब तू भोज दे, तो कंगालों, टुण्डों, लंगड़ों और अंधों को आमंत्रित कर, और तब तू आशीषित होगा क्योंकि उनके पास ऐसा कोई साधन नहीं कि तुझे बदला दें, लेकिन धर्मियों के जी उठने पर तुझे प्रतिफल मिलेगा।
3. यीशु ने लज्जा की दीवार के पीछे रहने वालों का स्वागत किया। उसने एक ऐसी वेश्या के जीवन में क्षमा और एक नया जीवन पहुँचाया, जो एक फरीसी के घर के दावत के कमरे में बिन बुलाए मेहमान की तरह उससे मिलने आ पहुँची थी। हालाँकि उसने एक शब्द भी मुँह से नहीं निकाला था फिर भी पापों की क्षमा और प्रेम पाकर लौट गई। लूका 7:37-47 उसने व्यभिचार में पकड़ी एक स्त्री को पथराव द्वारा मार डाले जाने से भी बचाया। यूहन्ना 8
4. यीशु जातिवाद की दीवार के पीछे रहने वाले लोगों से प्रेम करता था। भाषा, जाति और धर्म की परवाह न करते हुए, यीशु उनके पास गया। वह सामरी गाँवों में गया, उनके घरों में रहा, और उसने वहाँ रोटी खाई। उसने गिरासेनियों के प्रदेश में एक दुष्टात्मा ग्रस्त को छुटकारा और चंगाई दी। वह अक्सर अछूतों और पिछड़ों-पीड़ितों के साथ देखा जाता था।
5. यीशु बीमारी की दीवार के पीछे रहने वालों को अपने पास बुलाता था। वह ऐसे लोगों की तरफ प्रेम से अपना हाथ बढ़ाता था जिन्हें रोग और धर्म के नाम पर अशुद्ध ठहरा दिया गया था। लूका 5
6. यीशु नफ़रत की दीवार-के पीछे छिपे अप्रिय लोगों से प्रेम करता था। यीशु ने दुश्मनों से प्रेम करना, सताने वालों के लिए प्रार्थना करना, और श्राप देने वालों को आशिष देना सिखाया। मत्ती 6 उसने अपने सताने वालों और उन दुश्मनों से भी प्रेम किया जिन्होंने उसे सूली पर चढ़ाने की योजना बनाई और अजाम दिया। उसने कहा, हे पिता, इन्हें क्षमा करना क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं। लूका 23:34
7. यीशु पाप की दीवार के पीछे रहने वालों से मिला। लेवी के घर में दूसरे चुंगी लेने वालों, पापियों और अपने चेलों के साथ भोजन किया। जब व्यवस्था के शिक्षकों फरीसियों ने उसे पापियों और चुंगी लेने वालों के साथ खाते हुए देखा, तो उन्होंने उसके चेलों से पूछा, वह चुंगी लेने वालों और पापियों के साथ क्यों खाता-पीता है? यह सुनकर यीशु ने उनसे कहा, भले-चंगों को वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, लेकिन बीमारों को होती है। मैं धर्मियों को नहीं वरन् पापियों को बुलाने आया हूँ। मरकुस 2
इफिसियों 2:12-14, याद रखो कि तुम लोग उस समय मसीह से अलग और इस्राएल की प्रजा कहलाए जाने से वंचित थे, प्रतिज्ञा की गई वाचाओं के भागीदार न थे, और आशाहीन और संसार में परमेश्वर-रहित थे। लेकिन तुम जो पहले मसीह यीशु से दूर थे, अब मसीह के लहू द्वारा उसके पास लाए गए हो।
क्योंकि वह स्वयं हमारा मेल है जिसनेबैर अर्थात् विभाजन की दीवार गिरा कर दोनों को एक कर दिया है।
प्रभु यीशु के वचन की सामर्थ
उसके शब्द अनुग्रह और अधिकार से युक्त थे। मत्ती 13:54, वह अपने नगर में आकर लोगों को उनके आराधनालयों में उपदेश देने लगा, और वे हैरान होकर कहने लगे, इस मनुष्य को ऐसा ज्ञान और ऐसी आश्चर्यजनक सामर्थ्य कहाँ से मिली है? फरीसी, जो धार्मिक ज्ञान के शिक्षक थे, परम्पराओं, धार्मिक मतों, और पवित्र शास्त्र की शिक्षाओं के बारे में बात करते थे। उनके जीवन में कोई प्रेम, न्याय या कृपा नहीं थी क्योंकि वे सिर्फ अक्षर-ज्ञान सिखाते थे - वचन की आत्मा को आगे नहीं बढ़ाते थे।
प्रभु यीशु की शिक्षा फरीसियों द्वारा सिखाई जा रही बातों से भिन्न थी। वो मनुष्य में जीवन से जुड़ी बातों को सम्बोधित करता था और उन्हें वह सत्य देता था जो उन्हें आजाद करता था। वह परमेश्वर का प्रेम और परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार बाँटने आया था। यीशु की बोली इसलिए अधिकारपूर्ण थी क्योंकि उसकी कथनी और करनी में कोई अन्तर नहीं था जो वह कहता था, वह उस पर
अमल भी करता था।
दीवार के उस पार गली नुक्कड़ में चर्च
आओ हम दीवार के उस पार चलें, जहाँ रहने वालों ने प्रभु यीशु की चर्चा नहीं सुनी है। प्रभु यीशु की जीवन शैली जो हमें सुसमाचार में देखने को मिलती है, वो परमेश्वर के राज्य की जीवन शैली है और हम सब विश्वासियों की भी जीवन शैली ऐसी ही होनी चाहिए।
ऐसा जीवन संसार और सांसारिक धर्मों की समझ से अलग है। प्रभु यीशु ने हमेशा उन लोगों की सुधि ली जो दीवार के उस पार रहते थे। जो लोग आत्मिक जीवन के सुसमाचार से वंचित थे उनके पास वो गया।
जिन लोगों और जातियों को दुष्ट, पापी और घृणित माना जाता था वो उनके पास खुशखबरी लेकर गया।
उसने सामरी जाति के लोगों और यहूदियों के बीच की दीवार को गिरा दिया। हालांकि उनकी भाषा, रीतिरिवाज और धर्म और सामाजिक व्यवहार में समानता नहीं थी।
लेकिन परमेश्वर के प्रेम के द्वारा वो उनसे मिला। अच्छे सामरी की कहानी ये बताती है की एक सामरी व्यक्ति भी ऐसा जीवन जी सकता है जिसे परमेश्वर चाहता है, जहां लेवी और याजक परमेश्वर की नजर में विफल हो जाते हैं।
सामरी व्यक्ति परमेश्वर के उस नियम में खरा उतरा जिसमें कहा गया था, कि तू अपने परमेश्वर और अपने पड़ोसी से प्रेम रखना।
प्रभु यीशु ने चुंगी लेनेवाले पापी को धर्मी ठहराया, बजाए एक फरीसी के जो अपने कर्मों पर भरोसा रखता था। वह कपटी और ढोंगी माना गया।
प्रभु यीशु ने एक अन्यजाति रोमी को एक यहूदी से धार्मिकता के पटल पर ऊंचा दर्जा दिया।
आज्ञाकारिता की धार्मिकता को समझाने के लिए प्रभु यीशु ने उन सबको अपना भाई, माता और बहन कहा जो परमेश्वर की आज्ञा मानते हैं।
प्रभु यीशु के वचन प्रेम से भरपूर थे, और हर तरह के लोगों को आकर्षित करते थे, और उनके अंदर विश्वास जगाते थे।
उसने उन लोगों को आजाद किया, जो झूठ के गुलाम थे उन्हें सत्य देकर उसने मुक्त किया। उसने पीड़ितों और निराश लोगों को उत्साहित किया जैसे हम
मत्ती के पहाड़ी उपदेश में पढ़ते हैं।
वो दीवार के उस पार रहने वाले गली कूचों में, बेघर राहगीरों, बीमारों, पीड़ित और शोषित लोगों के बीच खुशखबरी लाया है। वो भूखे प्यासे, बेघर, नंगे, बीमार और कैदियों के साथ अपने आपको जोड़ता है। कंगाल, अंधे, बंधुए और कुचले हुओं के साथ अपनी पहचान बनाता है, जैसे लिखा है-
मत्ती 25:35-36, वह कहेगा मैं भूखा था, तुमने मुझे खाने को दिया, मैं प्यासा था और तुमने मुझे पानी पिलाया, मैं बेघर था तुमने मुझे अपने घर में ठहराया, मैं नंगा था तुमने मुझे कपड़े पहनाये, मैं बीमार था तुमने मेरी सुधि ली, मैं कैदखाने में था तुम मुझ से मिलने आये। शांति, आनंद, आशा, विश्वास, और मुक्ति सब के लिए लाया है। परमेश्वर का राज्य जगत में लाया है।
आओ हम सब मिलकर उसके पीछे पीछे दीवार के उस पार चलें,
जहां अभी तक उसके प्रेम, बलिदान और मुक्ति की कथा नहीं पहुंची है।
संघर्ष प्रार्थना
ये वो प्रार्थना है, जिसमें दर्द है, पीड़ा है, कराह है. चिल्लाहट है और आंसू हैं।
सम्पूर्ण समर्पण और भरोसे के साथ परमेश्वर की उपस्थिति में आना है, झुकना है। उसकी मर्जी करने की प्रतिज्ञा के साथ विनाश की ओर जाने वाले लोगों के लिए प्रार्थना में संघर्ष करना है।
प्रभु यीशु ने स्वयं प्रार्थना में संघर्ष किया है। लूका 22:41-46 और वह घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगा। कि हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।
और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बन्दों की नाई भूमि पर गिर रहा था। उसने कहा उठो, प्रार्थना करो, कि परीक्षा में न पड़ो।
इब्रानियों 5:7
उस ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकार कर, और आंसू बहा बहा कर उस से (जो उस को मृत्यु से बचा सकता था), प्रार्थनाएं और विनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई।
संघर्ष प्रार्थना क्यों?
1. हमारी लड़ाई -किस तरह की है। हम बाहर से आम इंसान की तरह जीते हैं और दिखाई भी देते हैं लेकिन, हम एक लड़ाई लड़ रहे हैं। यदि इस सच्चाई को हम नहीं मानेंगे, तो कैसे जीत सकेंगे? 2 कुरिन्थियों 10:3-4 क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं. तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते।
क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं।
2.मल्लयुद्ध -कुश्ती है ये नजदीक की, आपकी व्यक्तिगत लड़ाई है अदृश्य शैतान के राज्य की हर दर्ज की सेना से सामना है, शैतान का भी राज्य है उसकी भी आत्मिक सेनाएं हैं।
इफिसियों 6:11,12 क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध, लोहू और मांस से नहीं, परन्तु प्रधानों से और अधिकारियों से, और इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से, और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं।
3.शैतान का राज्य- संसार की हर सरकार या शासन के ऊपर एक अदृश्य अंधकार की आत्मिक शक्ति का साया रहता है। तीन राज्य हैं इसे त्रिलोक कह सकते हैं-
1. स्वर्ग का राज्य या परमेश्वर का राज्य
2. शैतान का राज्य, जो संसार के ऊपर मंडराता है।
3. संसार या मनुष्य का राज्य, जो धरती पर है।
शैतान के राज्य में शक्तियां हैं, जिनमें शैतान, उसके दूत, दुष्टात्माएं और प्रेतात्माएं शामिल हैं ये अदृश्य रहती हैं और ज़मीन पर, शरीर शक्ति, धन, धर्म और राजनीति में हस्तक्षेप और योगदान करते हुए, शैतान का एजेंडा आगे बढ़ाती है।
परमेश्वर के खिलाफ बगावत जारी रहती है।
बाइबल से कुछ वचन और घटनाएं ये बातें समझने के लिए। जो मनुष्य जीवित परमेश्वर के साथ नहीं हैं उसकी आज्ञा नहीं मानते और उसका विरोध करते हैं वे भी शैतान के सहयोगी हैं।
लूका 4:5-6 तब शैतान उसे ले गया और उस को पल भर में जगत के सारे राज्य दिखाए। और उससे कहा; मैं यह सब अधिकार, और इन का वैभव तुझे दूंगा,
क्योंकि वह मुझे सौंपा गया है: और जिसे चाहता हूं, उसी को दे देता हूँ।
मत्ती 12:26, 28 और यदि शैतान ही शैतान को निकाले, तो वह अपना ही विरोधी हो गया है; फिर उसका राज्य कैसे बना रहेगा?
पर यदि में परमेश्वर की आत्मा की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता हू, तो परमेश्वर का राज्य तुम्हारे पास आ पहुंचा है।
A) यहेजकेल 28:1-20
यहां सूर देश में एक साथ दो शासक राज्य कर रहे हैं। एक मनुष्य है दूसरा शैतान
मनुष्य (सोर के शासक के रूप में) यहे 28:2 सोर के प्रधान से कह, परमेश्वर यहोवा यों कहता है कि तू न मन में फूलकर यह कहा है, मैं ईश्वर हूँ, मैं समुद्र के बीच परमेश्वर के आसन पर बैठा हूँ, परन्तु यद्यपि तू अपने आपको परमेश्वर सा दिखाता है, तौभी तू ईश्वर नहीं, मनुष्य ही है।
शैतान (सोर के अदृश्य राजा के रूप में) यहे. 2:12-20
परमेश्वर यहोवा यों कहता है, तू तो उत्तम से भी उत्तम है; तू बुद्धि से भरपूर और सर्वांग सुन्दर है। तू परमेश्वर की अदन नाम बारी में था; ....तू छानेवाला अभिषिक्त करूब था, मैं ने तुझे ऐसा ठहराया कि तू परमेश्वर के पवित्र पर्वत पर रहता था;
B) दानिय्येल अपने लोगों और यरूशलेम के विषय में 21 दिन तक प्रार्थना और उपवास में आंसू बहा रहा था। पहले ही दिन परमेश्वर ने एक स्वर्गदूत को संदेश के साथ प्रार्थना का जवाब भेजा, लेकिन फारस के साम्राज्य के ऊपर के अदृश्य आत्मिक शासक ने उसे संघर्ष में उलझाए रखा। ये घटना हमें सिखाती है, कि मनुष्य का राज्य और शैतान का राज्य मिलकर परमेश्वर के राज्य का विरोध करते हैं। शैतान का मनुष्य से दुश्मनी का एक कारण यह है कि मनुष्य परमेश्वर के स्वरूप में सृजा गया है।
शैतान के साथ मिलकर काम करने वाले लोग इस बात को भांप नहीं पाते हैं कि वे शैतान के साथ हैं।
दानिय्येल 10:12, जब तूने समझने बूझने के लिये मन लगाया और अपने परमेश्वर के सामने अपने आपको दीन किया, उसी दिन तेरे वचन सुने गये, और मैं तेरे वचनों के कारण आ गया हूँ।
C) स्मिरना की कलीसिया के नाम पत्र में प्रभु यीशु कहते हैं प्रकाशितवाक्त 2:10, देखो, शैतान तुम में से कितनों को जेलखानों में डालने पर है ताकि तुम परखो जाओ; (अदृश्य शैतान जेलखाने में डालेगा, किसी मनुष्य या सरकार का
नहीं लिया गया है)
D) पतरस पर जुल्म मनुष्य करेंगे लेकिन किसके इशारे पर ? शैतान के
लूका 22:31 शमौन है, हे शमौन, देख, शैतान ने तुम लोगो को मांग लिया है कि गेहूं की नाईं फटके । शैतान के
E) गिरासेनियों के देश में भूतग्रस्त के अंदर भूत प्रेतों की सेना समय हुई थी। प्रभु यीशु के आदेश से बाहर निकलने को तैयार थीं, लेकिन उस प्रदेश को नहीं छोड़ना चाहती थी। और 2000 सूअरों के अंदर रहना चाहती हैं।
मरकुस 5:9, 10, 12 मेरा नाम सेना है; क्योंकि हम बहुत उसने उससे बहुत विनती की, हमें इस देश से बाहर न भेज।
और उन्होंने उससे विनती करके कहा, कि हमें उन सूअरों में भेज दे कि हम उनके भीतर जाएं।
4.खून का चढ़ावा - लोग दुष्ट शक्तियों को खून चढ़ाते हैं और उसकी उपासना भी करते हैं गांवों में घरों में उनसे वाचा बांधकर (समझौता) वो शैतान के राज्य में उसके बंधुआ बन जाते हैं।
यशायाह का वचन हमारे चारों तरफ होने वाली रीतियाँ दिखाता है जिस कारण लोग प्रभु यीशु की शरण में आने के लिये आजाद नहीं होते हैं।
हमारे चारों तरफ की आत्मिक अवस्था यशायाह की किताब में बताई गई है।
यशायाह 28:15,16,18 तुम ने कहा है कि हमने मृत्यु से वाचा बान्धी और अधोलोक से प्रतिज्ञा कराई है; इस कारण विपत्ति जब बाढ़ की नाई बढ़ आए तब हमारे पास न आएगी; क्योंकि हमने झूठ की शरण ली और मिथ्या की आड़ में छिपे हुए हैं। (मृत्यु - दुष्ट भूत प्रेत पिशाच ईश्वर जो खून का चढ़ावा चाहते हैं, उसकी शरण ली है)
तब जो वाचा तुम ने मृत्यु से बान्धी है वह टूट जाएगी, और जो प्रतिज्ञा तुम ने अधोलोक से कराई वह न ठहरेगी; जब विपत्ति बाढ़ की नाई बढ़ आए, तब तुम उस में डूब ही जाओगे।
(झूठे ईश्वर मनुष्य को बचा नहीं पाएंगे)
निर्गमन 23:32 तू न तो उनसे वाचा बान्धना और न उनके देवताओं से।
5. देवताओं को दंड - परमेश्वर जिस दिन मिस्र के देवताओं को दंड देता है, तब लोग भूत-प्रेत और शैतान की शक्ति और बंधन से उसी दिन आजाद हो जाते हैं।
सुसमाचार प्रचार से पहले अंधकार की शक्तियों को प्रार्थना के माध्यम से दंडित करना जरूरी है।
निर्गमन 12:12 क्योंकि उस रात को मैं मिस्र देश के बीच में से होकर जाऊंगा, और मिस्र देश के क्या मनुष्य क्या पशु, सब के पहिलौठों को मारूंगा; और मिस्र के सारे देवताओं को भी मैं दण्ड दूंगा; मैं तो यहोवा हूं।
6. भूखों मारने का अर्थ है झूठे ईश्वरों की भरमाने की शक्ति को
खत्म करना।
सपन्याह 2:11 यहोवा उन को डरावना दिखाई देगा, वह पृथ्वी भर के देवताओं को भूखों मार डालेगा, और अन्यजातियों के सब द्वीपों के निवासी अपने अपने स्थान से उसको दण्डवत करेंगे।
7.भूत प्रेतों को दंडित करने का तरीका
मुंह में प्रभु यीशु की भक्ति रखो और हाथ में उसका पवित्र वचन, तब दुष्ट शक्तियां अपने आप सांकलों और बेड़ियों में बंध जाएंगी।
भजन संहिता 149:6, 8 उनके कण्ठ से ईश्वर की प्रशंसा (भक्ति) हो, और उनके हाथों में दोधारी तलवारें (वचन) रहें, ताकि वे उनके राजाओं को सांकलों से, और उनके प्रतिष्ठित पुरुषों को लोहे की बड़ियों से जकड़ रखें, (भूत प्रेत और शैतानी ताकतें) भूत प्रेत मनुष्य
8.के अंदर कैसे प्रवेश करते हैं?
आपको मालूम हो की इब्राहिम की संतान और मूसा द्वारा 10 आज्ञाओं पर चलने वाले लोगों के अंदर भी भूत प्रेत क्यों प्रवेश कर सके, वो कौन सा द्वार था, जो उन्होंने खोला था। प्रभु यीशु जब जगत में आये तो भूत प्रेतों से बहुत यहूदियों को आजाद क्यों करना पड़ा, इसका कारण ये था कि उन्होंने भी नरबलि किया था पिशाचों के लिए।
आज हमारे बीच भी इतने भूत प्रेत से पीड़ित लोग क्यों हैं? उसका कारण खून का चढ़ावा है। हमें प्रार्थना के द्वारा इन शक्तियों को हराना होगा।
परमेश्वर के वचन में यहाँ लिखा है भजन संहिता 106:35-38 वे उन्हीं जातियों से हिलमिल गए और उनके व्यवहारों को सीख लिया;
और उनकी मूर्तियों की पूजा करने लगे, और वे उनके लिये फन्दा बन गई। और उन्होंने अपने बेटे-बेटियों को पिशाचों के लिये बलिदान किया;
और अपने निर्दोष बेटे-बेटियों का लोहू बहाया जिन्हें उन्होंने कनान की मूर्तियों पर बलि किया, इसलिये देश खून से अपवित्र हो गया।
9.लेकिन परमेश्वर लड़ेगा, हमें डरना नहीं है।
व्यवस्थाविवरण 1:30, 3:22 तुम्हारा परमेश्वर यहोवा जो तुम्हारे आगे आगे चलता है वह आप तुम्हारी ओर से लड़ेगा, जैसे कि उसने मिस्र में तुम्हारे देखते तुम्हारे लिये किया; उन से न डरना; क्योंकि जो तुम्हारी ओर से लड़ने वाला है वह तुम्हारा
परमेश्वर यहोवा है।
10.विजय के लिए विश्वास चाहिए
1 यूहन्ना 5:4 वह विजय जिससे संसार पर जय प्राप्त होती है हमारा विश्वास है।
2 कुरिन्थियों 13:4 वह निर्बलता के कारण क्रूस पर चढ़ाया तो गया, तौभी परमेश्वर की सामर्थ से जीवित है, हम भी तो उस में निर्बल हैं; परन्तु परमेश्वर की सामर्थ से जो तुम्हारे लिये है, उसके साथ जीएंगे।
संघर्ष प्रार्थना
ये वो प्रार्थना है, जिसमें दर्द है पीड़ा है, कराह है। चिल्लाहट है और आंसू हैं। सम्पूर्ण समर्पण और भरोसे के साथ परमेश्वर की उपस्थिति में आना है, झुकना है। उसकी मर्जी करने कि प्रतिज्ञा के साथ विनाश की ओर जाने वाले लोगों के लिए प्रार्थना में संघर्ष करना है
प्रभु यीशु ने स्वयं प्रार्थना में संघर्ष किया है
लुका 22:41-46
और वह घुटने टेक कर प्रार्थना करने लगा। कि हे पिता यदि तू चाहे तो इस कटोरे को मेरे पास से हटा ले, तौभी मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो।
और वह अत्यन्त संकट में व्याकुल होकर और भी हृदय वेदना से प्रार्थना करने लगा; और उसका पसीना मानो लोहू की बड़ी बड़ी बन्दों की नाई भूमि पर गिर रहा था। उसने कही उठो, प्रार्थना करो, कि परीक्षा में न पड़ो॥
इब्रानियों 5:7
उस ने अपनी देह में रहने के दिनों में ऊंचे शब्द से पुकार पुकार कर, और आंसू बहा बहा कर उस से (जो उस को मृत्यु से बचा सकता था), प्रार्थनाएं और बिनती की और भक्ति के कारण उस की सुनी गई।
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