गर्भपात क्लीनिकों के पास बफर ज़ोन गाइडलाइंस के तहत मौन प्रार्थना पर प्रतिबंध ??
पब्लिक ऑर्डर एक्ट 2023 के तहत, अब यह अपराध माना जाएगा कि कोई भी व्यक्ति गर्भपात सेवाओं के संबंध में किसी अन्य व्यक्ति को जानबूझकर या लापरवाही से प्रभावित करे, यदि वह क्लीनिक के 150 मीटर की सीमा के भीतर हो। इस कानून का उद्देश्य गर्भपात क्लीनिकों के आसपास अनावश्यक दबाव और तनाव को रोकना है ताकि वहाँ आने वाले लोग अपनी सेवा का चयन स्वतंत्रता से कर सकें।
सीपीएस की नई गाइडलाइंस के अनुसार, बफर ज़ोन के भीतर कुछ गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाया गया है, जिनमें पोस्टर, पर्चे बांटना, शोर मचाना, और प्रदर्शनों का आयोजन करना शामिल है। हालांकि, मौन प्रार्थना जैसी गतिविधियों को प्रतिबंधित गतिविधियों में शामिल नहीं किया गया है। अधिकारियों का कहना है कि मौन प्रार्थना जैसे मामलों को संदर्भ और परिस्थिति के आधार पर देखा जाएगा।
कुछ संगठनों ने इस गाइडलाइन का स्वागत किया है, जबकि कुछ ने इसे असंवेदनशील बताया है। गर्भपात अधिकार संगठनों का कहना है कि यह कदम जरूरी था ताकि गर्भपात क्लीनिकों के पास के क्षेत्रों को सुरक्षित और शांतिपूर्ण बनाया जा सके। वहीं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पैरवी करने वालों का मानना है कि यह दिशानिर्देश धार्मिक स्वतंत्रता का भी सम्मान करता है।
CPS का मानना है कि इस गाइडलाइंस से बफर ज़ोन में शांति बनाए रखने में मदद मिलेगी और गर्भपात क्लीनिकों में जाने वाले लोगों की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
ये पूरा मामला क्या है ? क्यो लन्दन में हॉस्पिटल्स के सामने प्रार्थना करना भी मना है ?
क्यों लन्दन के हॉस्पिटल्स के बाहर प्रार्थना करने वालों को सरकार जेल में डाल रही है?
**लंदन में गर्भपात क्लीनिकों के बाहर प्रार्थना करने वालों पर सख्ती, सरकार ने दी चेतावनी**
*लंदन:* इंग्लैंड में गर्भपात क्लीनिकों के बाहर प्रार्थना और विरोध करने वाले लोगों के खिलाफ सरकार ने सख्त रुख अपनाया है। नए कानूनों के तहत, अब गर्भपात क्लीनिकों के बाहर प्रार्थना या अन्य गतिविधियों के जरिए किसी को प्रभावित करना अपराध माना जा सकता है। इस कदम का उद्देश्य गर्भपात क्लीनिकों के आसपास सुरक्षा सुनिश्चित करना और उन लोगों को मानसिक शांति प्रदान करना है जो वहां सेवाओं के लिए जाते हैं।
पब्लिक ऑर्डर एक्ट 2023 की धारा 9 के तहत, अगर कोई व्यक्ति गर्भपात सेवाओं के निर्णय को प्रभावित करने के इरादे से किसी व्यक्ति से संपर्क करता है, तो इसे कानून का उल्लंघन माना जाएगा। कानून के अनुसार, क्लीनिक के 150 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार का दबाव, विरोध प्रदर्शन, पोस्टर, पर्चे बांटना और मौन प्रार्थना भी निषिद्ध हो सकती है, यदि इसे किसी के निर्णय को प्रभावित करने की मंशा से किया गया हो।
सरकार का कहना है कि यह कदम केवल सुरक्षा के लिए है, ताकि किसी भी तरह की असहजता या दबाव के बिना लोग अपनी चिकित्सा सेवाओं तक पहुँच सकें। क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (CPS) ने कहा है कि हर मामले को व्यक्तिगत आधार पर जांचा जाएगा। हालाँकि, इसे लेकर कुछ धार्मिक संगठनों और व्यक्तियों ने नाराजगी जताई है, उनका कहना है कि मौन प्रार्थना पर भी प्रतिबंध लगाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है।
इसके बावजूद, CPS का तर्क है कि प्रार्थना करने का उद्देश्य किसी पर दबाव डालना नहीं होना चाहिए, और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कानून का दुरुपयोग न हो। जिन लोगों पर इस कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगता है, उन्हें जेल की सजा या आर्थिक दंड का सामना करना पड़ सकता है।
कुछ अधिकार संगठनों ने इस कानून का स्वागत किया है और इसे उन लोगों की सुरक्षा के लिए जरूरी बताया है जो गर्भपात सेवाएं प्राप्त करना चाहते हैं। उनका मानना है कि यह कानून उन्हें मानसिक शांति और गोपनीयता प्रदान करेगा, जो ऐसे समय में आवश्यक है।
इस खबर से जुड़ा पूरा मामला क्या है ?
लंदन में गर्भपात क्लीनिकों के बाहर प्रार्थना और प्रदर्शन को लेकर विवाद का मामला काफी समय से चर्चा में है। कई संगठन और लोग गर्भपात का विरोध करते हुए क्लीनिकों के बाहर प्रार्थना करते हैं या पोस्टर लगाते हैं। उनका मानना है कि वे महिलाओं को गर्भपात के खिलाफ जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, कई महिलाओं और गर्भपात अधिकार संगठनों ने शिकायत की है कि यह गतिविधियाँ उन पर दबाव डालती हैं, उन्हें असहज महसूस कराती हैं और उनकी निजी स्वतंत्रता का उल्लंघन करती हैं।
इस मुद्दे को ध्यान में रखते हुए, पब्लिक ऑर्डर एक्ट 2023 पारित किया गया, जिसमें गर्भपात क्लीनिकों के आसपास 150 मीटर के दायरे में "बफर ज़ोन" बनाए गए हैं। इस ज़ोन के अंदर किसी भी तरह का प्रदर्शन, पर्चे बांटना, नारे लगाना, या किसी को गर्भपात न करवाने के लिए प्रभावित करना अपराध माना जाएगा। इसके साथ ही, क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (CPS) ने यह स्पष्ट किया कि किसी पर दबाव डालने के इरादे से की गई "मौन प्रार्थना" भी इस कानून के दायरे में आ सकती है।
कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गर्भपात सेवाओं के लिए आने वाले लोगों पर किसी भी तरह का दबाव न डाला जाए और वे बिना किसी हस्तक्षेप के अपनी सेवाओं का लाभ उठा सकें। लेकिन इस कानून का एक पहलू यह भी है कि हर मामले को अलग-अलग देखा जाएगा। मौन प्रार्थना स्वतः आपराधिक नहीं होगी, बल्कि यह देखा जाएगा कि प्रार्थना का उद्देश्य किसी को प्रभावित करना है या नहीं।
दोनों पक्षों की प्रतिक्रिया:
गर्भपात समर्थक और महिला अधिकार संगठन: उनका मानना है कि बफर ज़ोन महिलाओं की मानसिक और शारीरिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। गर्भपात कराना किसी भी महिला के लिए एक व्यक्तिगत और गंभीर निर्णय होता है, और ऐसे माहौल में उसे किसी भी तरह के दबाव या शर्मिंदगी का सामना नहीं करना चाहिए। यह कानून गर्भपात सेवाओं का उपयोग करने वाली महिलाओं को गोपनीयता और मानसिक शांति प्रदान करने का प्रयास करता है।
धार्मिक संगठन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थक: इस कानून का विरोध करते हुए कुछ धार्मिक और अधिकार संगठनों का कहना है कि यह कानून उनके धार्मिक अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाता है। उनका कहना है कि मौन प्रार्थना किसी पर दबाव डालने के लिए नहीं होती और इसे आपराधिक गतिविधि के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। उनके अनुसार, प्रार्थना करना उनके धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा है, जिसे वे किसी के भले के लिए करते हैं।
इस मामले ने इंग्लैंड और वेल्स में बड़ी बहस को जन्म दिया है, जहाँ लोगों के अधिकारों और सुरक्षा को संतुलित करने की चुनौती सामने आई है।
कहा से शुरू हुआ था ये सब ?
लंदन: अक्टूबर से इंग्लैंड और वेल्स में गर्भपात क्लीनिकों के आसपास "बफर ज़ोन" लागू किए जाने की योजना है। इन बफर ज़ोन का उद्देश्य गर्भपात क्लीनिकों के 150 मीटर के दायरे में किसी भी प्रकार के विरोध प्रदर्शन, नारेबाजी, पोस्टर लगाने, या अन्य गतिविधियों को रोकना है जो गर्भपात सेवाओं के इच्छुक लोगों पर दबाव डाल सकती हैं। पब्लिक ऑर्डर एक्ट 2023 के तहत, यह प्रावधान किया गया है ताकि गर्भपात सेवाओं का उपयोग करने वालों को शांति और गोपनीयता का माहौल प्रदान किया जा सके।
हालांकि, क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (CPS) ने मौन प्रार्थना को अपराध के रूप में स्पष्ट रूप से नामित नहीं किया है। इसका अर्थ यह है कि मौन प्रार्थना स्वतः आपराधिक नहीं होगी, लेकिन कानून में इसकी स्थिति को लेकर कुछ अस्पष्टता है। CPS ने बताया कि हर मामले को संदर्भ और परिस्थिति के आधार पर देखा जाएगा। यदि मौन प्रार्थना को किसी को गर्भपात सेवाओं से रोकने के उद्देश्य से किया गया माना जाता है, तो इसे अपराध की श्रेणी में लाया जा सकता है।
कानून में स्पष्टता की कमी पर चिंता:
धार्मिक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थकों ने इस कानून की अस्पष्टता पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जब मौन प्रार्थना किसी प्रकार के विरोध में शामिल नहीं है, तो इसे भी संदेह के दायरे में क्यों रखा गया है। धार्मिक संगठनों का मानना है कि प्रार्थना करना एक व्यक्तिगत अधिकार है, और अगर यह किसी को प्रभावित करने के इरादे से नहीं है, तो इसे अपराध की श्रेणी में नहीं आना चाहिए।
वहीं, महिला और गर्भपात अधिकार संगठनों का मानना है कि इस कानून का उद्देश्य गर्भपात सेवाओं का उपयोग करने वाले लोगों को शांति और सुरक्षा प्रदान करना है। उनका तर्क है कि बफर ज़ोन में किसी भी प्रकार की गतिविधि – चाहे वह मौन प्रार्थना हो या अन्य कोई कार्य – उन महिलाओं पर दबाव डाल सकता है, जो पहले से ही एक कठिन निर्णय से गुजर रही होती हैं।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि कानून में इस अस्पष्टता के कारण भविष्य में कई मामलों में कानूनी विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। CPS का यह रुख कि मौन प्रार्थना को अलग-अलग मामलों के आधार पर देखा जाएगा, इस मुद्दे को और जटिल बना सकता है।
आगे का रास्ता:
इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, कुछ समूह सरकार से यह मांग कर रहे हैं कि कानून में अधिक स्पष्टता लाई जाए, ताकि मौन प्रार्थना और अन्य धार्मिक गतिविधियों के अधिकारों और लोगों की गोपनीयता व सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित किया जा सके। अक्टूबर में इन बफर ज़ोन के लागू होने के बाद इस मुद्दे पर अधिक बहस और चर्चा होने की संभावना है।